‘साहित्य सुषमा’ के शख्सियत अनुभाग में हमारी बातचीत हो रही है भारत के “चक दे इंडिया” फेम के असली हीरो ‘मीररंजन नेगी’ से। मीररंजन नेगी भारतीय हॉकी के वो चमकते सितारे रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन-काल में कई उतार-चढ़ाव देखे, जिसमें प्रमुख था उनका भारतीय हॉकी में वो उच्च स्थान प्राप्त करना जो बहुत कम खिलाडियों को नसीब होता है और इसके साथ ही उनके साथ हुआ अन्याय भी जिसके दुख में वे कई वर्षों तक अपना सम्मान पुनः प्राप्त करने के लिए लगे रहे। मीररंजन नेगी ने १९८२ के एशियाई गेम्स के बाद वह दिन भी देखे जब उनको अकारण बहुत लोगों ने गद्दार की संज्ञा दे दी। इस संज्ञा के साथ कोई ईमानदार और देशभक्त खिलाड़ी कैसे जी सकता है और इस मनगढ़ंत दाग का बोझ सहते हुये भी उन्होंने देश के प्रति अपनी निष्ठा, अपने हुनर, कर्मठता और क्रियाशीलता का साथ नहीं छोड़ा और अंतत उन्होंने यह साबित कर दिया की वे एक राष्ट्रभक्त ही नहीं बल्कि एक महान खिलाड़ी भी है। मीररंजन जी एक मंजे हुये खिलाड़ी है और एक खिलाड़ी खिलाड़ी होता है जो कभी हिम्मत नहीं हारता है। उसके लड़ने की क्षमता ही उसे एक विश्वस्तरीय खिलाड़ी बनाती है।
कैसे मीररंजन नेगी ने अपने जीवन में अपना खोया हुआ सम्मान वापिस पाया और फिर एक बार देश की आँखों के तारे बन गए? उनकी जीवनगाथा पर बनी यादगार फिल्म ‘चक दे इंडिया’ एक बेहद सफलतम फिल्म रही और लोगों द्वारा इस फिल्म के कथानक को बेहद पसंद किया। और इसी फिल्म के द्वारा लोगों को वास्तविकता का पता चला।
आइए, आज इसी कर्मठ व्यक्तित्व से कुछ उनकी ही आवाज़ में जानते हैं कि कैसे उन्होंने अपने जीवन के उतार-चढ़ाव और उन से पैदा होने वाले दबावों का हिम्मत से सामना किया और भारत और विदेशों में आम आदमी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत और खिलाड़ियों के लिए एक आदर्श बन गए। ये आडिओ फाइल आप सब पाठकों और श्रोताओं के लिए।