राम मंदिर तो आया पर रामराज्य सिर्फ भाषणों में है

(22.08.2020 NAVBHARAT-HINDI)

एक लम्बी अदालती प्रक्रिया के बाद अंततः राम मन्दिर बनाने के रास्ते के सभी अवरोध समाप्त हो गए और आखिर अयोध्या में लोगों का एक भव्य राम मंदिर का स्वप्न साकार हो गया।  करोड़ों लोगों की बरसों की इच्छा आखिर पूर्ण हुई।  अनेक हिन्दू संस्थाओं ने इसके लिए सदियों तक संघर्ष किया और अंततः उसमें इन्हें सफलता भी मिली।  राम का मंदिर आखिर भारत में नहीं तो फिर कहाँ बनेगा,  इस मुद्दे का यह एक पक्ष था जिस पर बरसों-बरस बहस चली और काफी गरमा गरमी भी हुई।  पर इस मुद्दे का एक पक्ष और भी है जिसे शायद कभी भी नहीं छुआ गया।  कोई  भी संस्था जो राम मंदिर के लिए संघर्ष करने का दावा करती है उन्होंने इस बात की कभी भी कोशिश नहीं की कि हमारे देश में राम-राज्य भी आना चाहिए।

हक़ीक़त यह है कि आज हम सभी देश में राम-राज्य की कल्पना तो करते हैं किन्तु वास्तविकता में देश में जो वातावरण है यह एक तरह से राम राज्य की कल्पना का उपहास मात्र है।  आश्चर्यपूर्ण बात तो यह है कि राम मंदिर स्थापित राज्य उत्तर प्रदेश में आज जिस अराजकता का माहौल है उससे हर भारतीय की यह आशा टूट जाती है कि कभी इस देश में राम-राज्य आ भी सकता है।  सभी नेता राम-मंदिर की राजनीति पर अपनी-अपनी रोटी सेंकते दिखाई देते हैं किन्तु कोई भी नेता आकर यह नहीं कहता कि वह देश में राम-राज्य लाने के लिए प्रतिबद्ध है।  राम-राज्य तो बहुत दूर की बात है, हालात तो इस जगह पर पहुँच गए हैं जहाँ पर बहू-बेटियों का घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है।  बलात्कार, हत्या, भ्रष्टाचार, लूटपाट, डकैती, जैसी खबरें तो अब रोज़मर्रा की खबरों में शामिल है। देश प्रदेश से निर्भया जैसे बलात्कार और हत्याओं की खबर आती ही रहती है। कितनी ही मासूम बच्चियों का अपहरण और फिर उनके साथ  सामूहिक बलात्कार किया जाता है पर किसी राजनेता के कान पर जूं नहीं रेंगती।  बस वही घिसे-पिटे बयान , आश्वासन, कड़ी कार्यवाही का आदेश, समितियों का गठन और कभी स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम बनाने का प्रस्ताव… बस, यहीं पर आ कर सब अपने अपने फर्ज़ से मुक्ति पा लेते हैं।

हमारे देश में संस्कारों की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, नैतिकता की दुहाई दी जाती है,  विश्वगुरु बनाने के सपने भी  देखे जाते हैं पर देश की त्रासदी यह है कि यह सब केवल और केवल भाषणों में सुनाया जाता है।  हमने इन वाक्यों को व्यवहार, विचार और आचरण में उतरते कभी नहीं देखा। दूसरी ओर विश्व के ही कुछ देश जैसे ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, फ़िनलैंड, डेनमार्क, जापान, कोरिया,  जर्मनी, कनाडा आदि देशों में बहुत हद तक राम-राज्य आ चुका है।  वहाँ पर अपराध न के बराबर है, लोग  ईमानदार हैं, भ्रष्ट नेता नहीं हैं, कभी-कभार ही किसी हत्या, बलात्कार और अपहरण की खबर आती है।

अच्छा होगा कि राम मंदिर बनने के साथ ही हम एक सभ्य समाज बनाने की ओर भी उन्मुख हो।  एक अच्छे नागरिक होने का फ़र्ज़ निभाएँ जैसे कि ऊपर दिए कई देशों में होता है।  अपने ही ढोल पीटने और गुणगान करने से रामराज्य नहीं आएगा।  यह तभी होगा जब देश में व्यवस्था का आधार सशक्त हो क्योंकि इसी से प्रत्येक भारतीय का चारित्रिक निर्माण होगा।  देश में हर बात ऊपर से प्रारम्भ होती है, कहने का तात्पर्य है “जैसा राजा, वैसी प्रजा”, पर देश में जब ऐसे नेताओं और कर्णधारों की क़तार लगी हो जिनका चरित्र संदेह के घेरे में हो तो रामराज्य सिर्फ भाषणों में ही नज़र आता है।  यही इस देश की त्रासदी भी है।  अभी उनकी प्रतीक्षा करने से अच्छा है हम स्वयं ही राम-राज्य की ओर कदम बढ़ाएँ, एक आदर्श स्थापित करें।

 

डॉ सुषमा गजापुरे सुदिव’ 

(स्तम्भ लेखक वैज्ञानिक,आर्थिक और समसामयिक विषयों पर चिंतक और विचारक है )

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