Published on 17.06.2018 in Navbharat (Hindi)
महत्वाकांक्षा स्वयं ही आकांक्षाओं से भरी होती है, किन्तु यह आकांक्षाएँ सकारात्मक हो तो और भी अधिक प्रभावशाली हो जाती हैं। नए भारत की जो तस्वीर हमारे सामने है वह इन्हीं महत्वकांक्षी पंखों के साथ ऊंची उड़ान भर रहीं हैं। भारत के युवा सफलता के श्रेष्ठ और उच्चतम शिखर पर अपना परचम फैला रहें हैं। यह एक ऐसा दौर है जहां लिंगभेद, वर्णभेद आयुभेद और सीमाभेद कोई विशेष मायने नहीं रखता। केवल और केवल आगे बढने और श्रेष्ठ को पाने की आकांक्षा मात्र हैं। आइये ऐसे कुछ उदाहरण आपके समक्ष रखती हूँ।
अभी हाल ही में सीहोर की मेघा परमार भारतीय युवाओं के लिए एक नया रोल मॉडल बन गयी है। एक किसान की बेटी ने माउंट एवेरेस्ट पर विजय पाकर न केवल मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया है बल्कि पूरे भारत की महत्वाकांक्षाओं को भी गौरवान्वित किया है। यही है नए भारत की तस्वीर। महत्वाकांक्षी भारत, अधीर भारत जो शायद कामयाबी के नए झंडे गाड़ने के लिए और प्रतीक्षा नहीं करना चाहता। वो संघर्ष और मेहनत के साथ भाग कर सफलता को प्राप्त करना चाहता हैं। पुराने समय में हमें सिखाया जाता था कि हमें धीरज रखना चाहिए और अधीरता तो बुरी आदत में ही गिना जाता था, लेकिन अब यही अधीरता भारत को बदलाव की ओर ले जा रही है। एक समय था जब भारत को धीमे–धीमे चलता हुआ हाथी कहा जाता था पर अब वही हाथी चीते जैसी फुर्ती दिखा कर उत्कृष्टता के नए मानदंड स्थापित करना चाहता है।
अभी हाल ही में आये विभिन्न शिक्षण बोर्ड्स के नतीजे इस बात को साबित कर रहे हैं कि नौजवान छात्र/छात्राएँ परीक्षाओं में प्राप्त अंकों की नयी ऊंचाइयों को छू रहे हैं। कश्मीर घाटी से आये नतीजे भी मन को प्रफुल्लित करने वाले हैं। घाटी में ये एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक बदलाव का सूचक है। आइये हो रहे बदलावों पर एक नज़र डालें। १३० करोड़ की आबादी में लगभग ३० से ४० करोड़ भारतीय मध्यम वर्ग से आते हैं। लगभग ४०–५० करोड़ भारतीय निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं तथा बाकि ४० करोड़ करीब गरीबी रेखा या उस से नीचे संघर्ष कर रहे हैं। पिछले ३० वर्षों में सामाजिक ताने बाने में मूलभूत बदलाव आये हैं। मध्य वर्गीय और निम्न मध्य वर्गीय युवा नए महत्वाकांक्षी भारत को नयी दिशा और नयी ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। यहाँ तीव्र प्रतिस्पर्धा है, उत्कृष्टता के नए मानदंड स्थापित करने की होड़ लगी हुई है। आई आई टी और आई आई एम् जैसे संस्थानों में स्थान पाने के लिए कड़ी स्पर्धा है। इसके अलावा उत्कृष्टता के नए संस्थान और शिक्षा की नयी धाराओं में भी युवाओं की रूचि बढ़ रही है। पत्रकारिता, मेडिकल, आई टी, मनोरंजन और खेलों के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित हो रहे हैं। बात अब नयी और उच्चकोटी के प्रतिस्पर्धा की है। इस प्रतिस्पर्धा में अब साधारण प्रतिभा का कोई स्थान नहीं है। युवाओं में उच्चतर अंक पाने की जो होड़ लगी है उस से अन्य देश भी स्तब्ध हैं तथा उनके युवा भी आश्चर्यचकित हैं। शिक्षा क्षेत्र में ऐसी प्रतिस्पर्धा अविश्वसनीय है। अमेरिका में गणित ओलिंपियाड में भारतीय छात्रों का लगातार उच्च स्थान प्राप्त करना एक आम बात सी हो गयी है। लगभग साढ़े पांच लाख भारतीय उच्च शिखा की खोज में हर साल विदेशों में चले जाते हैं । इन भारतीयों का विदेशों में डायस्पोरा एक बहुत ही मज़बूत अंग बन गया है तथा ये अपनी बहुमुखी प्रतिभा से उन देशों की राजनीति को भी प्रभावित करने लगा है। अमेरिका के उच्च शिक्षा संस्थानों में भारतीय शिक्षकों की अधिकाधिक मान्यता भी इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
अगर इस तीव्र प्रतिस्पर्धा की विवेचना करें तो पाएंगे की नया मध्यमवर्ग अब बहुत ज़्यादा महत्वकांक्षी हो चला है। अब वो सरकारी तंत्र या उसकी सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहता है। युवाओं के माता–पिता शिक्षा लोन लेने में हिचकिचा नहीं रहे हैं। शिक्षा लोन का पोर्टफोलियो हर वर्ष बढ़ता जा रहा है तथा बैंकिंग प्रणाली की रीढ़ की हड्डी बन गया है। हर वर्ष लाखों करोड़ रुपये के शिक्षा लोन युवाओं के द्वारा लिए जा रहे हैं। ये अधीरता और अति मत्वाकाँक्षा एक ऐसा नया वर्ग खड़ा कर रही है जो शिक्षा के माध्यम से पूरी दुनिया में अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहती है। ये दौड़ उत्कृष्टता की है, सर्वोच्च स्थान पाने की है। इसी के साथ वित्तीय रूप से भी नया युवा बहुत ही सशक्त हो रहा है तथा नयी नीतियों के निर्माण में सहयोग कर रहा है।
इसी आधार पर यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि नए भारत का यह महत्वकांक्षी युवा वर्ग अब रूकने का नाम न लेगा और बहुत ही जल्दी भारतवर्ष के उच्चतम प्रतिमानों को शिखर पर स्थापित करेगा। एक नए और उन्नत भारत की यही तो तस्वीर है जो हम देखना चाहते हैं।
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