Published on 01.07.2018 in Navbharat (Hindi)
सृष्टि ने मानव को अनादिकाल से अनेक बहुमूल्य उपहार दिये हैं। किन्तु हम अपनी असीमित भौतिक इच्छापूर्ति हेतु उसी प्रकृति को उपेक्षित कर, केवल अपना सुख देखते हैं। हम इतने स्वार्थी हो गए हैं कि हम प्रकृति के बारे में सोचना ही नहीं चाहते । इसी क्रम में, पिछले कुछ दशकों से प्लास्टिक से बने उत्पाद हमारे रोज़मर्रा जीवन का एक अभिन्न अंग बन गए हैं। जीवन का शायद ही कोई अंग बचा होगा जहाँ प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। जहाँ प्लास्टिक और इसके उत्पादों ने हमारे जीवन को आसान बनाया तथा वस्तुओं को पैक करने के उद्योगों को नयी परिभाषा दी, वहीं समय गुज़रने के साथ ये वरदान धीरे–धीरे हमारे जीवन का अभिशाप बनना शुरु हो गया है। दूर–दूर तक देखे तो सिर्फ और सिर्फ प्लास्टिक और पॉलीथिन का अंबार लगा हुआ है। वजह है प्लास्टिक तथा इसके उत्पादों का अंधाधुंध उत्पादन और इस्तेमाल तथा किसी भी बड़े छोटे शहर या गाँव में किसी भी किस्म के गुणवत्ता पूर्ण और वैज्ञानिक ढंग से कचरा प्रबंधन का न होना।
एक अनुमान के अनुसार पूरी दुनिया में हर साल १५ करोड़ टन से ज़्यादा के प्लास्टिक उत्पादों का उत्पादन किया जाता है। भारत में औसतन करीब १.५ – २ करोड़ टन के प्लास्टिक उत्पादों की खपत होती है। हमारा देश लगभग १५००० टन प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन पैदा करता है। ऐसा ही चलता रहा तो रहा तो २०५० तक भारत ४४ करोड़ टन कचरा प्रति वर्ष पैदा करेगा। करीब १ करोड़ टन कचरा तो भारत के ६ प्रमुख शहर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरु और कोलकाता ही प्रतिवर्ष पैदा करते हैं। ये एक भयावह स्थिति है।
भारत में एक अन्य अनुमान के अनुसार ९४% कचरा डंपिंग ग्राउंड्स में चला जाता है। तथ्य ये भी बताते हैं कि जितना प्लास्टिक भारत में पैदा होता है उसका बड़ा हिस्सा कचरे में तब्दील हो जाता है। ये कचरा कई सौ सालों तक प्रकृति में ऐसा ही रहता है तथा इसका क्षय भी नहीं होता है। प्लास्टिक वेस्ट या कचरे का बहुत बड़ा हिस्सा भारत में भी पुनर्चक्रण (Recycling ) में चला जाता है पर २ या ३ बार के पुनर्चक्रण के बाद इस प्लास्टिक का कोई उपयोग नहीं रह जाता है। ये बाद में डंपिंग ग्राउंड्स में चला जाता है । बहुत बड़ी संख्या में प्लास्टिक से बने थैले जब बेकार हो जाते हैं तो लोग उन्हें कहीं भी फेंक देते हैं, यही बेकार प्लास्टिक के थैले समुद्र या नदियों में जाकर जलप्रवाह को चोक कर देते हैं। प्लास्टिक की फेंकी हुई थैलियां शहरों की सीवर लाइन्स को भी चोक कर रही हैं जिससे वर्षा के मौसम में भरे हुए पानी की निकासी में दिक्कतें आती हैं तथा शहरों में जल भराव जैसी स्थिति पैदा हो जाती है ।
अभी कुछ दिन पहले भारत में महाराष्ट्र पहला ऐसा राज्य बन गया जहाँ पर प्लास्टिक के निर्माण व् उपयोग को बड़े पैमाने पर रोक दिया गया है। अनुमान लगाया गया है कि इस रोक से १५००० करोड़ रुपये के प्लास्टिक उद्योगों पर बहुत ही बुरा असर पडेगा तथा ३ लाख लोग अपनी नौकरी गवा देंगे। किन्तु यहाँ एक समाधान यह भी है कि प्लास्टिक उत्पादन के स्थान पर यदि यही उत्पादक किसी ऐसी प्रणाली को विकसित कर उनका उत्पादन करे जो कि उपयोगी भी हो और उससे प्रकृति को नुकसान भी न हो,जैसे कपड़े,जूट या पेपर से बनी थैलियाँ या काँच की बोतलें आदि।
अगर देखा जाए तो प्लास्टिक के कचरे से निपटने के लिए सरकारों ने पिछले सालों में न कोई ठोस नीति बनायी न इस पर गंभीरता से विचार तक हुआ है। सच ये है कि बिना किसी नीति के भारत में प्लास्टिक का कचरा प्रतिदिन लाखों गरीबों द्वारा एकत्र किया जाता है, उसका वितरण किया जाता है तथा उसका पुनर्चक्रण (Recycling ) भी होता है । इस प्रक्रिया में लाखों लोगों को रोज़गार भी मिला हुआ है लेकिन इसका मूल्य समस्त मानव जगत को अपनी गिरती हुई सेहत और चारों ओर फैली हुई गंदगी से चुकाना पड़ रहा हैं। १९९५ में हिमाचल प्रदेश Non -Bio-degradable Garbage (Control) Act १९९५ अस्तित्व में आया। बाद में उसको हरयाणा सरकार ने भी अपनाया। ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैण्डर्ड (BIS), केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड दिल्ली, प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल २०१६ तथा महाराष्ट्र सरकार ने इस सिलसिले में कुछ प्रभावकारी कानून बनाये हैं पर वो उतनी सख्ती से लागू नहीं किये गए हैं जितना होना चाहिए था। इस क्षेत्र में सरकार को बहुत संवेदनशीलता और संतुलन रखने की आवश्यकता है।
आज प्लास्टिक प्रदूषण अपने उच्चतर गंभीर बिन्दु पर है इसलिए आवश्यक हैं कि सरकार पूरे भारत देश में प्लास्टिक के कुछ उत्पादनों पर तात्कालिक रोक लगाएँ। ये कदम निश्चित ही अलोकप्रिय होंगे पर यदि दूरदृष्टि से देखे तो शायद यही आनेवाले भविष्य को स्वच्छ एवं स्वस्थ भारत का ताज़ पहनाएंगे। नागरिकों का भी ये कर्त्तव्य हैं कि वें प्लास्टिक मुक्त भारत के इस यज्ञ में हिस्सा लें और प्लास्टिक को न कहें क्योंकि नागरिकों के सहयोग के साथ ही देशहित के लिए किए जा रहें हर कार्य संभव है।
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